यहां चार छावनियां थीं, अब तीन बची हैं, बड़ी छावनी, छोटी हो गई और छोटी छावनी बड़ी हो गई, इन छावनियों में रहते हैं साधु-संत
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पिछले कई सालों में अनेक बार अयोध्या पुलिस छावनी बनी है। पांच अगस्त को भूमि पूजन का कार्यक्रम है। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस दिन अयोध्या आएंगे। इस लिहाज से एक बार फिर अयोध्या की किलेबंदी शुरू हो गई है। बड़ी संख्या में सुरक्षा बल तैनात हैं। हर मुख्य सड़क पर पुलिस की बैरिकेडिंग है।
मतलब, एक बार फिर अयोध्या छावनी में तब्दील हो जाएगी। लेकिन, क्या आप जानते हैं कि अयोध्या में कई छावनियां सालों से हैं और वहां साधु-संत रहते आ रहे हैं।
इन छावनियों का इतिहास भारत में मुगल काल के कमजोर होने के साथ शुरू होता है। हालांकि, इनका कोई लिखित इतिहास उपलब्ध नहीं है, लेकिन ऐसा माना जाता है कि वैरागी साधुओं ने धर्म की रक्षा के लिए अयोध्या में एक साथ गुट बनाकर रहना शुरू किया और इनके एक साथ रहने की वजह से अंग्रेजों के समय उनके रहने की जगह को छावनी कहा जाने लगा।
कुछ समय पहले तक अयोध्या में चार प्रमुख छावनियां थीं- तुलसी दास जी की छावनी, बड़ी छावनी, तपसी जी की छावनी और छोटी छावनी। तुलसी दास जी की छावनी खत्म हो गई। खत्म होने की कोई साफ-साफ वजह तो कोई नहीं बताता लेकिन अयोध्या के रहने वाले मानते हैं कि उस छावनी में संतों का जाना-आना बंद हुआ और फिर धीरे-धीरे उसका वजूद ही खत्म हो गया।
बाकी बची तीन छावनियां आज भी आबाद हैं। आइए, एक-एक करके इन तीनों छावनियों में चलते हैं।
बड़ी छावनी
मुख्य अयोध्या शहर से दूर, एक किनारे में लगभग तीन एकड़ जमीन पर आबाद है ये छावनी। चारों तरफ बुलंद चारदीवारी है और आने-जाने के लिए एक दरवाजा है। इसे बड़ी छावनी क्यों कहते हैं? इस सवाल का कोई एक जवाब नहीं है। अलग-अलग जवाब हैं। एक का वजूद आस्था पर टिका है तो दूसरे का आकलन पर।
संतों के मुताबिक, बहुत पहले एक संन्यासी अपने साथ बारह सौ साधु-संतों के साथ घूमते हुए अयोध्या आए। वो चार महीने के लिए अयोध्या में डेरा डालना चाहते थे। चुकी उनके साथ और ग्यारह सौ साधु थे सो कोई तैयार नहीं हो रहा था। तब इस छावनी के पहले महंत श्री रघुनाथ दास जी महाराज ने उन्हें और उनके साथी साधुओं को यहां साल भर के लिए रोका। तभी इसे बड़ी छावनी कहते हैं।
वहीं, पिछले कई साल से धर्म और उसके पीछे के मर्म पर लिखने वाले और इस वास्ते कई बार अयोध्या आ चुके पत्रकार भव्य श्रीवास्तव का मानना है कि संभवतः इसका लेना-देना केवल उस क्षेत्रफल से है, जिसमें छावनी आबाद है।
छावनी के बीच में एक मंदिर है और चारों तरफ छोटे-छोटे कमरे बने हैं। एक तरफ जो कमरे हैं, उनके सामने साधू निवास लिखा है और दूसरी तरफ जो कमरे हैं उनके दरवाजे पर अलग-अलग लोगों के नाम और उनके जन्मस्थान लिखे हैं। ये बिलकुल वैसा ही है जैसे होटल में एक तरफ गर्ल्स होटल लिखा होता है तो दूसरी तरफ बॉयज होटल।
बड़ी छावनी में रहने वाले और खुद को छावनी का भक्त बताने वाले राम सरस इस बारे में बताते हैं, “देखिए। एक तरफ संत रहते हैं। उनकी दिनचर्या अलग होती है। एक तरफ भक्त रहते हैं और वो अपने हिसाब से रहते हैं। ऐसा इसलिए बनाया गया है ताकि भक्तों को संतों से और संतों को भक्तों से कोई दिक्कत ना हो।”
तपसी (तपस्वी) जी की छावनी
अयोध्या शहर के रामघाट इलाके में स्थित है ये छावनी। भव्य इमारत और इमारत पर की गई कारीगरी से सहज अंदाजा हो जाता है कि छावनी बहुत पहले से आबाद है। छावनी के बाहर पुलिस का पहरा रहता है। इसकी वजह आपको आगे बताएंगे।
अभी तो आप ये जानिए कि ये छावनी उन साधु-संन्यासियों के लिए बनवाया गया था जो जंगलों और पहाड़ों में तपस्या करते थे। जब वो घूमते-घूमते अयोध्या आते थे तो उनको ठहरने में और अपनी दिनचर्या बनाए रखने में दिक्कत होती थी। इन्हीं बातों का ख्याल रखते हुए इस छावनी का निर्माण हुआ।
खुद का परिचय जगतगुरु परमहंस आचार्य जी के रूप में करवाते हैं और इनके समर्थक इनको इस छावनी के वर्तमान महंत बताते हैं। जब हमने इनसे पूछा कि इस छावनी का निर्माण कब हुआ तो वो बोले, “अयोध्या में सबसे प्राचीनतम पीठ और सबसे सिद्ध पीठ तपसी जी की छावनी है। इसके बाद अयोध्या में कई छावनियां बनीं लेकिन सबसे पुरानी छावनी यही है।”
ऐसे ही दावे बड़ी छावनी में रहने वाले संत भी कर चुके हैं। इन दावों का कोई प्रामाणिक आधार नहीं है। बस अपनी-अपनी मान्यताओं के आधार पर जो जिस छावनी से जुड़ा है उसे सबसे पुराना बताता है।
तपसी छावनी का जिक्र पिछले साल नवंबर में तब राष्ट्रीय स्तर पर हुआ था जब परमहंस आचार्य यानी संत परमहंस दास ने राम जन्मभूमि न्यास के महंत नृत्यगोपालदास पर कथित तौर पर अभद्र टिप्पणी की। इसके बाद महंत नृत्यगोपालदास के समर्थकों ने उनको घेर लिया। उन पर हमला किया। पुलिस आई तो ही वो बाहर जा सके।
तब परमहंस दास को तपस्वी छावनी ने ये कहते हुए निष्कासित कर दिया था कि उनका आचरण अशोभनीय था। स्थानीय पत्रकार बताते हैं कि इसके बाद वो महीनों तक इधर-उधर भागे-भागे फिर रहे थे। जब उन्होंने अपने गुरु से माफी मांगी तो उनकी वापसी हुई। इसी घटना के बाद से छावनी के बाहर पुलिस के जवानों की तैनाती रहती है।
छोटी छावनी
आज की तारीख में अयोध्या की सबसे महत्वपूर्ण यही छावनी है। बाकी सभी छावनियों की तुलना में यहां चहल-पहल ज्यादा रहती है। सीआरपीएफ के चार जवान सुरक्षा में तैनात रहते हैं। वजह ये है कि इस छावनी के वर्तमान महंत नृत्यगोपालदास हैं।
राम मंदिर आंदोलन के अहम किरदार रहे अयोध्या के श्रीराम जन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष महंत नृत्य गोपालदास हैं और सुप्रीम कोर्ट से फैसला आने के बाद राम मंदिर निर्माण के लिए बनाए गए 'श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र' ट्रस्ट के अध्यक्ष हैं।
इस छावनी को छोटी छावनी के नाम से ही अयोध्या में लोग जानते हैं, लेकिन कुछ साल पहले इसका नाम बदलकर श्री मणिराम दास छावनी कर दिया गया। बिना अपनी पहचान जाहिर किए एक संत इसकी वजह बताते हैं। वो कहते हैं, “हम तो छोटी छावनी ही जानते थे। कुछ साल पहले नाम बदल दिया गया। शायद महंत जी को छोटी छावनी कहने में अच्छा नहीं लगता होगा।”
पांच अगस्त को अयोध्या में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आने की सम्भावना है। तैयारियां हर ओर हो रही हैं। छोटी छावनी यानी श्री मणिराम दास छावनी में भी चहल-पहल बढ़ी हुई है। अयोध्या की सभी छावनियों में आज इस छावनी का कद और प्रभाव सबसे ज्यादा है। इस वजह से बाकी छावनियों के महंतों के मन में एक कसक दिखती है। कोई भी खुलकर नहीं बोलता लेकिन करने पर ये साफ-साफ समझ आता है कि छोटी छावनी के प्रभाव का बड़ा हो जाना, बाकियों को रास नहीं आ रहा है।
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