जब 17 जून की सुबह आई, तो सबकुछ तबाह हो चुका था; सिर्फ 5 दिन में उत्तराखंड में साढ़े 3 हजार मिमी बारिश हुई थी
on
Get link
Facebook
X
Pinterest
Email
Other Apps
उस दिन तारीख थी 17 जून 2013, दिन था सोमवार और जगह केदारनाथ। उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित केदारनाथ हिमालय पर्वत के गढ़वाल क्षेत्र में आता है। धार्मिक ग्रंथों में जिन 12 ज्योतिर्लिंगों का जिक्र है, उनमें से केदारनाथ सबसे ऊंचाई पर है।
हजारों साल पुराना केदारनाथ मंदिर समुद्र तल से 11 हजार800 फीट की ऊंचाई पर बना है। इसके पीछे हिमालय पर्वत की श्रृंखला है। इतनी ऊंचाई पर पेड़-पौधे तो होते नहीं है। यहां सिर्फ नदियां-झील ही हैं। इलाके के एक चौथाई हिस्से में ग्लेशियर हैं।
अगर आप केदारनाथ मंदिर के सामने खड़े हैं, तो इसके बाईं ओर मंदाकिनी नदी बहती मिलेगी। ये नदी केदारनाथ मंदिर के पीछे दिख रहे चौराबाड़ी ग्लेशियर से ही निकलती है। इसीग्लेशियर में एक झील भी है, जिसे चौराबाड़ी झील कहते हैं।
केदारनाथ मंदिर से कुछ ही दूरी पर मधुगंगा और दूधगंगा नाम की नदियां मंदाकिनी में मिल जाती हैं। मंदिर के दाईं ओर पहाड़ों से एक और नदी निकलती है। इसका नाम है सरस्वती। केदारनाथ पहुंचकर सरस्वती नदी का संगम भी मंदाकिनी में हो जाता है।
अब वापस लौटते हैं 17 जून 2013 की तरफ। इस दिन केदारनाथ ने जो सुबह देखी थी, वैसी सुबह देखने की उम्मीद किसी ने सपने भी नहीं की होगी। चारों तरफ पानी। ग्लेशियर के टुकड़े। पहाड़ों का मलबा। कुछ टूटे पेड़-पौधे।
तीन दिन से भीग रहा था पूरा उत्तराखंड
इस हादसे से पहलेपूरे उत्तराखंड में तीन दिन से बारिश हो रही थी। केदारनाथ, जिस रुद्रप्रयाग जिलेमें आता है, वहांभी बारिश हो रही थीपर उतनी तेज नहीं। रुद्रप्रयाग में 14-15 जून को सिर्फ 15 मिमी बारिश हुई थी, लेकिन 16 जून को एक ही दिन में यहां 89 मिमी बारिश हो गई थी।
16 जून को आरती के समय में तेज बारिश हुई
16 जून को केदारनाथ में जब शाम की आरती की तैयारियां चल रही थीं, तभी अचानक यहां तेज बारिश शुरू हो गई। कुछ ही मिनटों में केदारनाथ मंदिर का परिसर पानी से लबालब भर गया। ऐसा कहते हैं कि कुछ लोग तो उसी समय डूब भी गए थे।
थोड़ी ही देर में अंधेरा छा गया। बत्ती गुल हो गई। बिजली के लिए जो पावर हाउस था, वो भी फेल हो गया। कुछ ही घंटों में वहां का मंजर पूरा बदल गया। चारों तरफ पानी ही पानी। जबरदस्त कीचड़। रोते-बिलखते-घबराते लोग।16 की शाम को तेज बारिश जैसे ही शुरू हुई, जगह-जगह लैंडस्लाइड होने लगे। पुल टूट गए। रास्ते बंद हो गए।
दूधगंगा नदी से मलबा बहकर मंदाकिनी में आ गया
दूधगंगा नदी से मलबा बहता हुआ मंदाकिनी नदी में आ गया। इसने मंदाकिनी नदी का रास्ता रोक दिया। कुछ ही देर में मंदाकिनी नदी के बाईं ओर से सरस्वती नदी को निकलने का रास्ता मिल गया। सरस्वती नदी केदारनाथ मंदिर के पूरब में बहने लगी। नतीजा ये हुआ कि मंदिर में ठहरे लोग पानी में डूब गए। बह गए।
रातभर लगातार बारिश से चौराबाड़ी झील का स्तर भी बढ़ गया। लेकिन, ग्लेशियर की वजह से पानी निकल भी नहीं पा रहा था। अगले दिन 17 जून की सुबह 7 बजे पानी निकला। इस पानी के साथ ग्लेशियर के टुकड़े और मलबा भी था। इसने मंदाकिनी नदी को मंदिर के रास्ते पर मोड़ दिया। इससे मंदिर में ही पानी, कीचड़, मलबा चला गया और तबाही मच गई।
सिर्फ 5 दिन में बरसा था साढ़े 3 हजार मिमी पानी
उत्तराखंड और केदारनाथ में आई इस त्रासदी के 4 साल बाद उत्तराखंड सरकार ने एक रिपोर्ट जारी की थी। इस रिपोर्ट के मुताबिक, राज्य में 14 जून से 18 जून के बीच 5 दिन में साढ़े 3 हजार मिमी से ज्यादा बारिश हुई थी। इतनी बारिश तो पूरे मॉनसून पीरियड (जून से सितंबर) में होने वाली बारिश से भी ज्यादा थी।
जिस रुद्रप्रयाग जिले में केदारनाथ है। वहांइन 5 दिनों में 256.6 मिमी बारिश हुई थी। इसमें से 240.8 मिमी बारिश तो अकेले 16, 17 और 18 जून को ही हुई थी।ज्यादा बारिश की वजह से यहां की बर्फ भी पिघलने लगी थी। इससे यहां की सभी प्रमुख नदियों का जलस्तर बढ़ गया। 18 जून को मंदाकिनी नदी खतरे के निशान से 7.5 मीटर ऊपर बह रही थी।
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, बाढ़ में 100 लोग ही मरे थे
जून 2013 में न सिर्फ उत्तराखंड, बल्कि पूरे उत्तर भारत में भयंकर बाढ़ आई थी। कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस बाढ़ में पूरे उत्तर भारत मेंसाढ़े 5 हजार से ज्यादा लोगों की जान गई थी। जबकि, उत्तराखंड सरकार की रिपोर्ट के मुताबिक, इस बाढ़ से पूरे उत्तराखंड में 100 लोगों की मौत हुई थी, जिसमें से 30 मौतें रुद्रप्रयाग जिले में हुई थी।
ऐसा कहा जाता है कि बाढ़ की वजह से केदारनाथ में करीब 3 लाख श्रद्धालु फंस गए थे, जिन्हें बाद में आर्मी, एयरफोर्स और नेवी के जवानों ने रेस्क्यू कर बचा लिया था। हालांकि, उसके बाद भी 4 हजार से ज्यादा लोग लापता हो गए थे।
बाढ़ की वजह से अगले साल पर्यटकों की संख्या 5 गुना कम हो गई
उत्तराखंड में केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री चार धाम हैं। इनके अलावा, यहां पर सिखों का प्रसिद्ध तीर्थस्थल हेमकुंड साहिब भी है। ये वही जगह है, जहां सिखों के 10वें गुरु गोविंद सिंह ने तपस्या की थी। इन पांचों जगह पर हर साल लाखों पर्यटक-श्रद्धालु आते थे। उत्तराखंड में बर्फबारी की वजह से केदारनाथ समेत चारों धाम और हेमकुंड साहिब साल के 5 महीने ही खुले रहते हैं।
लेकिन, 2013 में आई बाढ़ के बाद अगले साल यानी 2014 में इन पांचों जगह आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या 5 गुना तक कम हो गई थी।2013 में इन पांचों तीर्थस्थलोंपर 13.60 लाख श्रद्धालु आए थे। जबकि, 2014 में मात्र 2.73 लाख। हालांकि, 2012 में यहां करीब 63 लाख श्रद्धालु पहुंचे थे।
Comments
Post a Comment